Women’s Reservation Bill : महिला आरक्षण विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पेश कर दिया गया। कानून बनने के बाद से लोकसभा और राज्यों के विधानसभाओं में 33 परसेंट सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। शायद ही किसी विधेयक ने कानून बनने के लिए इतना लंबा इंतजार झेला होगा, जितना महिला आरक्षण विधेयक (Women’s Reservation Bill) को झेलना पड़ा। 27 साल से यह विधेयक एक सदन से दूसरे सदन के बीच फंसा रहा। आइये समझते हैं क्या है ये महिला आरक्षण विधेयक और 27 साल पहले किसने सबसे पहले उठाई थी इस विधेयक को लाने की मांग।
क्या है महिला आरक्षण विधेयक
Women’s Reservation Bill
महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा और राज्यों की विधानसभा में 33 परसेंट सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करेगा। विधेयक लागू होने के बाद महिला सदस्यों की संख्या बढ़कर 181 हो जाएंगी। पर ऐसा देश में परिसीमन के बाद ही संभव होगा। एक्ट बनने के बाद 33 परसेंट जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए अलग से आरक्षित की जाएंगी।
देश में हर परिसीमन के बाद महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें रोटेट होंगी। साल 2024 के आम चुनाव तक 33 परसेंट आरक्षण लागू नहीं होगा। इसकी वजह ये है कि तब तक इसके लिए जरूरी औपचारकताएं पूरी नहीं हो पाएंगी। उम्मीद की जा रही है कि 2029 के लोकसभा चुनाव तक लोकसभा और राज्यसभाओं की 33 परसेंट सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित (Women’s Reservation Bill) हो पाएंगी।
विशेषज्ञों की माने तो संसद के दोनों सदनों में पारित होने के बाद 50 परसेंट विधानसभाओं की मंजूरी भी लेनी होगी। तभी ये विधेयक कानून बन पाएगा।
महिला प्रतिनिधित्व में भारत का स्थान
महिलाओं को प्रतिनिधित्व के मामले में 141वें नंबर पर खड़ा है भारत। इस रैंकिंग में 185 देश शामिल है। न्यूजीलैंड और UAE में 50 परसेंट महिला सांसद है।
पहली बार कब हुई थी इसकी पहल
महिला आरक्षण विधेयक (Women’s Reservation Bill) की कहानी संसदीय कामकाज की जटिलता और राजनीतिक लाभ हानि को अनुचिक महत्व देने की बानगी है। इस पहल की शुरुआत 27 साल पहले तब हुई थी जब एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार ने सबसे पहले इसे 12 सितंबर 1996 को लोकसभा में पेश किया था।
सपा-बसपा ने कड़ा विरोध किया
विधेयक को भाकपा नेता गीता मुखर्जी के नेतृत्व वाली संयुक्त समिति के हवाले कर दिया गया। समिति ने दिसंबर 1996 में रिपोर्ट दी, पर कई सदस्यों ने अपनी असहमति के नोट भी दर्ज किए। 16 मई 1997 को विधेयक लाया गया और उस पर चर्चा की शुरुआत हुई। लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन के नेताओं ने ही इसका प्रबल विरोध किया।
1998 से 2004 की बीच भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक को पारित करने के लिए कई कोशिश किए। पहली बार 13 जुलाई 1998 को इसे लोकसभा में लाने की कोशिश हुई। तब के कानून मंत्री एम थंबीदुरई को सदन में तगड़ा विरोध झेलना पड़ा। इसे आखिरकार 23 दिसंबर 1998 को पेश किया गया। हालांकि लोकसभा भंग हो जाने के साथ विधेयक भी लैप्स हो गया।
भाजपा सरकार ने कई बार की कोशिश
जब अटल बिहारी वाजपेयी ने फिर से केंद्र में सरकार बनाई तो 22 दिसंबर 1999 को कानून मंत्री राम जेठमलानी ने इसे फिर से लाने की कोशिश कि। फिर इस पहल का सपा, बसपा और राजद ने तगड़ा विरोध किया। इसके बाद वाजपेयी सरकार ने 3 बार 2000, 2002, 2003 इस विधेयक को आगे बढ़ाने की कोशिश कि, पर वही दोबारा हुआ।
पार्टियों में महिला आरक्षण का श्रेय लेने की होण
महिला आरक्षण का बिल पेश किये जाे के वक्त हर कोई इसका श्रेय अपने सिर लेने की कोशिश में दिखा। कांग्रेस की ओर से यह याद दिलाने की कोशिश हुई कि मनमोहन सिंह सरकार में इसे राज्यसभा से पारित कराया गया थआ और कई मौकों पर लोकसभा में भी पारित हुआ था, लेकिन एक साथ दोनों सदन में यह पारित नहीं हो सका। इस पर केंद्रीय मंत्री गृहमंत्री अमित शाह ने तीखा विरोध किया और कहा कि कांग्रेस काल में एक बार भी इसे लोकसभा से पारित नहीं कराया गया।
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