Red Ant Chutney : अगर आपसे कोई पूछे की अपका फेवरिट डिश या खाना क्या है तो आप एक दो नहीं बल्की कई सारे पकवानों के नाम गिना देंगे। इसलिए आजकल सोशल मीडिया पर हर दूसरा वीडियो किसी फूड ब्लॉगर का होता है, जो आपको यूनीक या कहें कुछ ज्यादा ही यूनिक डिशेज़ के वीडियो दिखाते हैं। दुनिया के अलग अलग देशों में अलग अलग और अजीबो गरीब खाने के शौकीन लोग हैं। किसी देश में सांप खाया जाता है तो कहीं, बिच्छू, छिपकली, मेंढक जैसे जानवर लोग बड़े मजे से खाते हैं। पर क्या आप जानते हैं, भारत में एक ऐसा राज्य भी है जहां लोग लाल चींटी की चटनी (Red Ant Chutney) खाते हैं।
इन राज्यों में खाई जाती है लाल चींटी की चटनी
अब आप ये रहे होंगे जिस लाल चींटी को देख डर से हम भाग जाते हैं कि कहीं ये काट न ले, उसे भला खाएगा कौन। तो बता दें, भारत में तीन राज्य ऐसे भी हैं जहां पर कुछ समुदाय के लोग बड़े शौक से लाल चींटी की चटनी खाते हैं। ये 3 राज्य हैं ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड। यहां लाल चींटी की चटनी को स्थानीय भाषा में ‘चापड़ा’ या ‘काई चटनी’ भी कहा जाता है। यहां के लोगों को ये चटनी (Red Ant Chutney) इतनी पसंद है कि अब लोग इसे GI टैग देने की मांग कर रहे हैं।
लाल चींटी की ‘काई चटनी’
ओडिशा के मयुरभंज (Mayurbhanj) शहर में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग लाल चींटियों और चींटियों के अंडे का चटनी या सूप बनाकर खाते हैं। इसी तरह छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी इस चटनी को लोग काफी पसंद करते हैं। यहां के लोग इसे चापड़ा चटनी कहते हैं।
ओडिशा में Mayurbhanj के जंगलों में रेड वीवर एंट (Red Weaver Ant) काफी मात्रा में पाई जाती हैं। ये चींटियाँ पेड़ों पर रहती हैं और पेड़ों की पत्तियों से घोंसला बनाने का अनोखा हुनर रखती हैं। लोग अक्सर रेड वीवर चींटियों से दूर भागते हैं क्योंकि उनके डंक से तेज दर्द होता है और त्वचा पर लाल रंग के दाने हो जाते हैं, लेकिन मयूरभंज में, के आदिवासियों के लिए ये चीटियां (Red Ant Chutney) एक स्वदिष्ट भोजन है।
ताकत से भरपूर
स्थानीय लोग बताते हैं कि इस चटनी में विटामिन B-12, आयरन, मैग्नीशियम, प्रोटीन, कैल्शियम, जिंक, पोटैशियम, सोडियम, कॉपर, अमीनो एसिडड और फाइबर पाए जाते हैं। इसे खाने से इम्यूनिटी भी बूस्ट होती है।
बारिपदा के पीडब्ल्यूडी इंजीनियर नयाधर पाधियाल बताते हैं कि- “चटनी के लिए चींटियों के लार्वा और बड़ी चीटियों को प्राथमिकता दी जाती है, जिसे सिला पुआ, एक सपाट पत्थर और एक बेलनाकार पीसने वाले पत्थर पर हरी मिर्च (धनुआ लंका) और नमक के साथ पीसा जाता है। काफी समय से काई चटनी को ‘सुपर फूड’ के तौर पर प्रमोट किया जा रहा है। पाधियाल ‘बथुडी’ जनजाति से हैं। बथुडी इस क्षेत्र की एक लोकप्रिय जनजाति है, जो सदियों से लाल चींटी की चटनी खाने के लिए जानी जाती है।
सदियों से, आदिवासी समुदाय के लोग कुछ कीट प्रजातियों के अंडे, लार्वा, प्यूपा को खाने के उद्देश्य से जंगलों में घूमते रहे हैं। खाने वाले कीड़ों की खेती परंपरागत रूप से एशियाई देशों में होती रही है, लेकिन हाल के वर्षों में, दुनिया के अन्य हिस्सों में यह आम होती जा रही है।
कैसे बनती है लाल चींटी की चटनी
लाल चींटी की चटनी (Red Ant Chutney) बनाने के लिए पहले चींटियों और उनके अंडे को अच्छे से सुखाया जाता है। इसके बाद उसमें नमक, इलायची, लहसुन, अदरक, इमली, और स्वाद के लिए थोड़ी चीनी (Sugar) भी मिलाई जाती है। इस खास चटनी को शीशे की बरनी में रखा जाता है ताकि ये साफ भर तक चल सके।
काई चटनी के औषधी गुण
ओडिशा में रहने वाले आदिवासी समुदाय को लोगों का मानना है कि लाल चींटी की चटनी (काई चटनी) में कई सारे औषधीय गुण होते हैं। काई चटनी जोड़ों के दर्द, कफ, कमजोर नजर के लिए काफी फायदेमंद है। खाने के अलावा इस सुमदाय के लोग लाल चींटी के इस्तेमाल तेल बनाने में भी करते हैं। समुदाय के लोगों का ऐसा मानना है कि इससे स्किन से जुड़ी प्रॉब्लम्स दूर होती हैं।
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