Violation of Rights to Privacy : छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बिना अनुमति फोन पर बातचीत रिकॉर्ड करने को निजता का उल्लंघन (Violation of Rights to Privacy) माना है। दरअसल, तलाकशुदा पत्नी ने पति से गुजारा भत्ता दिलाने के लिए परिवार न्यायलय में आवेदन किया था। इस पर पतिन ने उसके चरित्र पर उंगली उटाते हुए उसकी बातचीत रिकॉर्ड करने और उसे बतौर प्रूफ पेश करने की अनुमति मांगी। परिवार न्यायालय ने यह अनुमित दे दी थी। इस पर महिला ने इस आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
मामला महासमुंद जिले का है। याचिकाकर्ता 38 साल की तलाकशुदा महिला ने 2019 में वकिली के जरिए परिवार न्यायालय में मामला दायर कर पति से गुजारा भत्ता दिलाने के लिए गुहार लगाई थी। 21 अक्टूबर 2021 को मामले की सुनवाई के दौरान 44 वर्षीय पति ने महिला के चरित्र पर सवाल उठाते हुए तर्क दिया कि ऐसे में उसे गुजारा भत्ता देने की जरूरत नहीं है।
पति ने वकील के जरिए परिवार न्यायालय से पत्नी की बातचीत रिकॉर्ड करने की और उसे बतौर प्रूफ पेश करने की अनुमति मांगी। इसके आधार पर पत्नी से कोर्ट के सामने सवाल जवाब करना चाहता था। पति की मांग को परिवार न्यायालय ने स्वीकार करते हुए बातचीत रिकॉर्डिंग की अनुमति दे दी थी। परिवार न्यायालय के इस फैसले से परेशान होकर महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इस आदेश को रद्द करने की गुहार लगाई।
महिला के वकील की दलील
Violation of Rights to Privacy
हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान महिला के वकील ने कहा कि परिवार न्यायालय ने महिला की फोन पर होने वाली बातचीत की रिकॉर्डिंग की अनुमति देकर कानूनी गलती की है, क्योंकि इससे याचिकाकर्ता की निजता के अधिकार का उल्लंघन (Violation of Rights to Privacy) हुआ है। उसकी जानकारी के बिना पति द्वारा बातचीत रिकॉर्ड की गई थी, ऐसे में उसका इस्तेमाल उसके खिलाफ नहीं किया जा सकता।
मामले की सुनवाई जस्टिस राकेश मोहन पांडेय की सिंगल बेंच में हुई। जस्टिस पांडेय ने परिवार न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए अपने फैसले में कहा-
ऐसा प्रतीत होता है कि प्रतिवादी (पति) ने याचिकाकर्ता की जानकारी के बिना बातचीत रिकॉर्ड कर ली है, जो उसके निजता के अधिकार का उल्लंघन के साथ ही संविधान के आर्टिकल 21 के तहत प्रदत याचिकाकर्ता के आधिकार का भी (Violation of Rights to Privacy) उल्लंघन है। निजता का अधिकार आर्टिकल 21 के जरिए परिकल्पित जीवन के अधिकार का एक अनिवार्य घटक है।
परिवार अदालत ने कोर्ट ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (CRPC) की धारा 311 के तहत आवेदक को अनुमति देकर कानूनू त्रुटि की है। हाई कोर्ट ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा पारित कुछ निर्णयों का हवाला भी दिया।
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