Partnership Firm : उत्तर प्रदेश भागीदारी अधिनियम, 1933 के तहत रजिस्ट्रेशन कराने वाली पार्टनरशिप फर्म अब सरकार की अनुमति के बिना अपने नामकरण में क्राउन, एंपरर, एंपरेस, एंपायर, किंग, क्वीन, इंपीरियल और रॉयल जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर सकेंगी। ब्रिटिश काल में बनाए गए कानून के तहत अभी प्रदेश में सरकार की मंजूरी के बिना पार्टनरशिप फर्म (Partnership Firm) के लिए उपनिवेशकालीन संस्कृति से जुड़े इन शब्दों का आपने नाम में प्रयोग करना निषिद्ध है।
योगी सरकार गुलामी की मानसिकता का अहसास कराने वाले नियम से निजात के लिए उप्र भागीदारी अधिनियम की नियमावली में संशोधन प्रस्ताव को जल्द कैबिनेट की मंजूरी दिलाने की तैयारी में है।
नहीं कर सकते थें इन शब्दों का इस्तेमाल
प्रदेश में पार्टनशिप फर्म (Partnership Firm) के संचालन और विनियमन को लेकर साल 1933 में उप्र भागीदारी अधिनियम लागू किया गया था। इस अधिनियम की धारा-58 की उपधारा-3 में प्रविधान था कि प्रदेश में रजिस्ट्रेशन होने वाली पार्टनरशिप फर्म अपने नाम के साथ क्राउन, एंपरर, एंपरेस, एंपायर, किंग, क्वीन, इंपीरियल और रॉयल जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं कर सकेंगी।
क्या थी वजह
वजह यह थी कि ब्रिटिश शासनकाल में यह ओहदे तत्कालीन शासक वर्ग से जुड़े थे। भारतीय संस्थाओं द्वारा इन शब्दों का इस्तेमाल ब्रिटिश शासकों की अपमान माना जाता था। इस अधिनियम को अमली जामा पहनाने के लिए नियमावली में प्रविधान है कि अधिनियम के तहत रजिस्ट्रेशन कराने वाली पार्टनरशिप फर्म (Partnership Firm) अपने नामकरण के लिए सरकार की अनुमति के बिना इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगी।
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विधानसभा की प्रतिनिधायन समिति ने अपने पांचवें प्रतिवेदन में उप्र भागीदारी को हटाने की सिफारिश की थी। प्रतिनिधायन समिति को सिफारिशों को मानते हुए सरकार ने अधिनियम में संशोधन करते हुए अंग्रेजों के प्रभुत्व का आभास कराने वाले इस प्रविधान को हटा दिया था। अधिनियम से तो इसे हटा दिया गया पर इसकी नियमावली में यह व्यवस्था अब भी बरकरार है।
योगी सरकार ऐसे सभी प्रतीकों, व्यवस्थाओं और परंपराओं को समाप्त करना चाहती है, जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद से जुड़ी गुलामी की मानसिकता का अहसास कराते हैं।
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