Om Prakash Rajbhar : राजनीति में कुछ भी हो सकता है। ये बात कुछ दिनों पहले ओम प्रकाश राजभर ने कही थी, जब एक मीडिया हाउस ने उनसे NDA में शामिल होने को लेकर सवाल किया था। फिर 16 जुलाई 2023 को अमित शाह ने एक ट्वीट किया और बताया कि आज दिल्ली में ओम प्रकाश राजभर जी से मुलाकात हुई और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले NDA गठबंधन में शामिल होने का निर्णय लिया। ओपी राजभर (Om Prakash Rajbhar) ने भी अमित शाह के साथ अपनी और बेटे की फोटो भी शेयर की और लिखा- भाजपा और सुभासपा आए साथ।
Om Prakash Rajbhar के पॉलिटिकल करियर की बात करें तो उन्होंने 14 साल पहले अपनी पार्टी सुभासपा की शुरुआत की थी, पर वो राजनीति में 1990 से ही सक्रीय हैं। हर लोकसभा या विधानसभा चुनाव में सुभासपा का किसी एक मजबूत पार्टी से जुड़ना तो तय ही रहता है। आईये जानते हैं, ओपी राजभर की सांप-सीढ़ी वाली राजनीति में कब-कब उन्होंने पलटी मारी और किस पार्टी में शामिल हुए, साथ ही क्यों उस पार्टी को बाद में छोड़ा।
14 साल में ओपी राजभर ने 6 बार मारी पलटी –
1 – Om Prakash Rajbhar ने अपनी राजनीति की शुरुआत बसपा (बहुजन समाज पार्टी) से की थी। बसपा के संस्थापक कांशीराम से ओपी राजभर काफी करीब थें। राजभर ने सबसे पहले 1996 में वाराणसी के कोलअसला विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा, जो आज पिंडरा विधानसभा के नाम से जाना जाता है। पर राजभर हा गए थे। धीरे-धीरे बसपा में मायावती का वर्चस्व और ताकत बढ़ने लगा तो ओपी राजभर ने बसपा से दूरी बना ली। आखिर में 2001 में राजभर ने बसपा छोड़ दिया।
2 – BSP छोड़ने के बाद ओम प्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) अपना दल में शामिल हुए। पर वाराणसी के कोलअसला सीट से अपना दल के अध्यक्ष सोनेलाल पटेल ने चुनाव लड़ने का एलान कर दिया। राजभर को ये बात जमी नहीं क्योंको वो कोलअसला से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे। एक साल के अंदर ही राजभर ने अपना दल से किनारा कर लिया।
3 – अक्टूबर 2002 में ओम प्रकाश राजभर ने फैसला किया खुद की पार्टी बनाने का, पर पार्टी तुरंत नहीं बनी। 2007 में उन्होंने पार्टी का नाम रखा भारतीय समाज पार्टी, पर चुनाव आयोग ने नाम देने से मना कर दिया क्योंकि आयोग के पास ये नाम खाली नहीं था। इसलिए राजभर ने अपनी पार्टी के नाम के आगे सुहेलदेव जोड़ दिया और इसतरह हुई सुहेलदेव भारती समाज पार्टी की शुरुआत।
2007 में ओपी राजभर की पार्टी सुभासपा ने 97 सीटों पर पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा, पर बदकिस्मती से एक भी सीट नहीं जीत पाई।
4 – यहां से शुरु हुआ सुभासपा का समर्थन वाला कार्ड
2008 में आजमगढ़ लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने ओपी राजभर से समर्थन मांगा। राजभर ने समर्थन दिया भी, पर सपा चुनाव हार गई। फिर 2009 में ओपी राजभर गठबंधन के लिए मुलायम सिंह यादव के पास खुद गए, तो मुलायम सिंह ने उन्हें सपा में विलय होने की सलाह दी। ओपी राजभर ने साफ मना कर दिया। फिर 2009 में राजभर ने अपनी पुरानी पार्टी ‘अपना दल’ के साथ मिलकर चुनाव लड़ा पर कहीं भी जीत नहीं सके।
5 – 2012 के विधानसभा चुनाव में ओपी राजभर (Om Prakash Rajbhar) ने मुख्तार की पार्टी कौमी एकता दल के साथ मिलकर चुनाव लड़े। 52 सीटों से लड़ने के बाद भी सुभासपा एक भी सीट पर नहीं जीत सकी। खुद ओपी राजभर भी अपनी जहूराबाद सीट से हार गए थे। 2014 में भी सुभासपा ने 13 सीटों पर चुनाव लड़ा, फिर भी एक भी सीट पर जीत नहीं मिली।
6 – फिर आया साल 2017 उत्तर प्रदेश का इतिहास बदलने और सुभासपा के दिन बहुरने की शुरूआत। ओपी राजभर ने पहली बार भाजपा को अपना समर्थन दिया। बीजेपी ने जीत के बाद सुभासपा को 8 सीटें दी। इनमें से चार पर सुभासपा की जीत हुई थी। ओपी राजभर भी जहूराबाद सीट से चुनाव लड़कर जीत गए और पहली बार विधायक बनें। योगी सरकार में उन्हें पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री बनाया गया।
पर यहां भी ओपी राजभर की योगी सरकार से ज्यादा दिनों तक बात बनी नहीं। ओपी राजभर ने आरोप लगाया कि उनकी पार्टी के लिए लखनऊ में कार्यालय, पार्टी के नेताओं को मंत्री दर्जा योगी सरकार ने अपने वादे पूरे नहीं किये। फिर ओपी राजभर ने राजभर समाज के लिए आरक्षण का मुद्दा उठाया। उन्हें एससी में शामिल कर एससी कोटा बढ़ाने की मांग करने लगे। इसके अलावा पूर्वांचल को अलग राज्य का दर्जा देने का मुद्दा भी उठाया।
इन सब को लेकर राजभर और योगी सरकार के बीच ज्यादा दिन बात बनी नहीं। मई 2019 में ओपी राजभर को सीएम योगी के मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया।
7 – 2022 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में ओपी राजभर ने असदुद्दीन ओवैसी के साथ मिलकर भागीदारी संक्लप मोर्चा बनाई। जोरों शोरों से प्रचार-प्रसार भी शुरु कर दिया। बाद में ओपी राजभर ने सपा के साथ गठबंधन कर लिया। सपा ने राजभर की पार्टी को 18 सीटें दी, जिसमें से सुभासपा 6 सीटों पर जीत गई। ओपी राजभर जहूराबाद से तो जीत गए पर उनके बेटे अरविंद राजभर वाराणसी के शिवपुर विधानसभा से हार गए। अरविंद राजभर ने आरोप भी लगाया कि उन पर हमला हुआ था।
8 – ओम प्रकाश राजभर के NDA में शामिल होने की बात तो काफी दिनों से चर्चा में थी, पर ओपी राजभर इसे नकारते रहें। हां बीच-बीच में हिंट भी दिया ये बोलकर कि राजनीति में कुछ भी हो सकता है। फिर 16 जुलाई 2023 को अमित शाह का ट्वीट आया और सारे अटकलों पर मुहर लग गई।
अमित शाह ने अपने ट्वीट में लिखा– श्री ओमप्रकाश राजभर जी (@oprajbhar) से दिल्ली में भेंट हुई और उन्होंने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी (@narendramodi) के नेतृत्व वाले NDA गठबंधन में आने का निर्णय लिया। मैं उनका NDA परिवार में स्वागत करता हूं।
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