New Jersey’s Akshardham Temple : भारत के बाहर आधुनिक समय में निर्मित विश्व के सबसे बड़े हिन्दू मंदिर का उद्घाटन 8 अक्टूबर को अमेरिका के न्यूजर्सी में होगा। अपने औपचारिक उद्घाटन से पहले देशबर स हर दिन हजारों हिन्दू और अन्य धर्मों को लोग यहां आते हैं। इसे प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार, डिजाइन किया गया है। आइये जानते हैं इस मंदिर (New Jersey’s Akshardham Temple) से जुड़ी कुछ खास बातें..
New Jersey’s Akshardham Temple –
- 90 km टाइम्स स्क्वायर न्यूयॉर्क से साउथ में और वाशिंगटन डीसी से 289 km उत्तर में न्यूजर्सी के रॉबिंसविले में बीएपीएस स्वामीनारायण अक्षरधाम द्वारा इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया जा रहा है। BAPS स्वामीनारायण संस्था ने भारत, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, केन्या, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया सहित विभिन्न स्थानों पर लगभग 1,400 मंदिरों का निर्माण किया है।
- 12वीं सदी का अंगकोरवाट मंदिर परिसर दुनिया का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर है। 500 एकड़ में अंगकोरवाट मंदिर फैला है और ये यूनेस्को का विश्व धरोल स्थल है। अंगकोरवाट (कंबोडिया) के बाद यह दूसरा सबसे बड़ां मंदिर है
- मंदिर (New Jersey’s Akshardham Temple) को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसे 1 हजार साल तक कुछ नहीं होगा। अक्षरधाम के हर पत्थर की एक कहानी है, जिन चार तरह के पत्थर को मंदिर बनाने के लिए चुना गया है। इसमें चूना पत्थर, गुलाबी बलुआ पत्थर, संगमरमर और ग्रेनाइट भी शामिल हैं
- मंदिर के निर्माण में लगभग 2 मिलियन क्यूबिक फीट पत्थर का इस्तेमाल किया गया और इसे दुनिया भर की अलग अलग जगहों से लाया गया। बुल्गारिया और तुर्की से चूना पत्थर, ग्रीस, तुर्की और इटली से संगमरमर, भारत और चीन से ग्रेनाइट, भारत से बलुआ पत्थर और यूरोप, एशिया, लैटिन अमेरिका से दूसरी सजावटी पत्थरों को मंगाया गया है
- 12,500 से अधिक वालेंटियर पूरे अमेरिका से मंदिर बनाने में सहायता कर रहे हैं
- अक्षरधाम के रुप में लोकप्रिय (New Jersey’s Akshardham Temple) ये मंदिर 183 एकड़ में फैला है। वहीं नई दिल्ली का अक्षरधाम मंदिर 100 एकड़ में फैला हुआ है
- 10 हजार मूर्तियों और प्रतिमाओं, भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों और नृत्य रूपों की नक्काशी सहित प्राचीन भारतीय संस्कृति के डिजाइन इस मंदिर में शामिल है
- बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था के अक्षरवत्सलदास स्वामी ने PTI न्यूज एजेंसी को बताया कि- हमारे आध्यात्मिक नेता (प्रमुख स्वामी महाराज) का दृष्टिकोण था कि पश्चिमी गोलार्ध में एक ऐसा स्थान जो दुनिया के सभी लोगों के लिए स्थान हो, न केवल हिंदुओं के लिए, न केवल भारतीयों के लिए, ये पूरी दुनिया के लिए होना चाहिए, जहां लोग आ सकें और हिन्दू परंपरा के सार्वभौमिक मूल्यों को सीख सकें।
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