Mobile Blue Light : मोबाइल केवल आंख और नींद को ही कमजोर नहीं कर रहा बल्कि इससे निकलने वाली नीली रोशनी (Mobile Blue Light) आपकी दिमाग की नसों को भी अपना शिकार बना रही है। रात में मोबाइल पर घंटों समय बिताने के कारण युवाओं में नींद न आने है। इससे तनाव प्रो. धीरज खुराना की परेशानी बढ़ रही के साथ शारीरिक और मानसिक संतुलन बिगड़ रहा है। गंभीर बीमारियां बढ़ने से दिमाग को खून की आपूर्ति करने वाली धमनियों में ब्लॉकेज हो रही है।
PGI के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रो धीरज खुराना ने न्यूरोसोनोलॉजी सम्मेलन में यह बात कही है। प्रो. खुराना ने बताया कि PGI के स्ट्रोक क्लीनिक में आने वाले ज्यादातर मामलों में यही केस हिस्ट्री है। इसलिए लोगों को मोबाइल का कम से कम इस्तेमाल करने की सलाह दी जा रही है। उनका कहना है कि मोबाइल से होने वाली फिजिकल प्राब्लम्स धीरे-धीरे अन्य अंगों को भी चपेट में लेती जाती है।
नींद को इस तरह निगल रही नीली रोशनी
Mobile Blue Light
प्रिंट मीडिया में पब्लिश्ड एक आर्टिकल के अनुसार, प्रो धीरज ने बताया कि आंखें नीली रोशनी (Mobile Blue Light) को रोकने में अच्छी नहीं हैं। इसलिए इसका सारा हिस्सा सीधे रेटिना के पीछे से गुजरता है जो मस्तिष्क को प्रकाश को छवियों में अनुवाद करने में मदद करता है।
प्रकाश के सभी रंगों के कॉन्टेक्ट में आने से नेचुरल नींद और जागने के चक्र या सर्केडियन लय को कंट्रोल करने में मदद मिलती है। किसी भी अन्य रंग की तुलना में नीली रोशनी शरीर की नींद के लिए तैयार होने की क्षमता के साथ खिलवाड़ करती है क्योंकि यह मेलाटोनिन नाम के हार्मोन को अवरुद्ध करती है जो हमे नींद देती है।
दिन में भी मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल खतरनाक
मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल सिर्फ रात में ही नहीं दिन में भी बेहद खतरनाक है। मोबाइल के कारण लोगों की शारीरिक क्रियाशीलता कम हो रही है। इससे मोटापा, शुगर और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियां तेजी से बढ़ रही है। फैट और अन्य खतरनाक तत्व शरीर में इकट्ठा होकर खून की धमनियों में ब्लॉकेज कर रहे है जिससे रक्त संचार प्रभावित हो रहा है। इस स्थिति के कारण ब्रेन स्ट्रोक और ऐसी अन्य घातक बीमारियां युवाओं को शिकार बना रही है।
सोने से पहले इन्हें देखना खतरनाक
टेलीविजन, समार्टफोन, गेमिंग सिस्टम, फ्लोरोसेंट लाइट बल्ब, एलईडी बल्ब, कंप्यूटर मॉनिटर.
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