Cornelia Sorabji : भारत की पहली महिला अधिवक्ता कार्नेलिया सोराबजी, जिनका जन्म 1866 में आज यानी 15 नवंबर को नासिक में हुआ था। वह बांबे यूनिर्वसिटी से ग्रैजुएशन करने और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से कानून पढ़ने वाली भी पहली महिला थी। हालांकि ऑक्सफोर्ड ने उन्हें डिग्री नहीं दी, क्योंकि तब महिलाओं को अधिवक्ता के रूप में पंजीकृत करने की व्यवस्था नहीं थी। भारत में काफी संघर्ष के बाद उन्हें वकालत की अनुमति मिली। वह बिना फीस लिए ही महिलाओं के केस लड़ा करती थीं। 1892 में पास हुई कार्नेलिया को 1922 में ऑक्सफोर्ड ने डिग्री दी। आइये जानते हैं कार्नेलिया सोराबजी के बारे में कुछ दिलचस्प बातें।
10 प्वाइंट्स में जानिये Cornelia Sorabji की जिंदगी से जुड़ी कुछ खास और दिलचस्प बाते-
- कार्नेलिया ब्रिटिश राज में जन्मी थीं। उनके माता-पिता पारसी थें, पर बाद में उन्होंने क्रिस्चिएनिटी धर्म अपना लिया था। कार्नेलिया पढ़ाई में अच्छी थी। बॉम्बे यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन करने वाली वो पहली महिला थीं।
- Cornelia Sorabji ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में क़ानून पढ़ने वाली पहली महिला बनीं, पर अंतिम परीक्षा में उन्हें पुरुषों के साथ बैठकर परीक्षा देने की परमिशन नहीं दी गई। उन्होंने इसके ख़िलाफ़ अपील की। तब यूनिवर्सिटी ने अपने नियमों में बदलाव किया, और उन्हें परीक्षा देने की परमिशन दी गई।
- 1892 में ब्रिटेन में वो पहली महिला थीं जिन्हें बैचलर ऑफ़ सिविल लॉ परीक्षा में बैठने की अनुमति मिली। पर Oxford University ने उन्हें 1922 में पूरे 30 साल बाद डिग्री दी।
- ऑक्सफ़ोर्ड से क़ानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद Cornelia Sorabji भारत लौट आईं। भारत में वो बैरिस्टर के तौर पर काम करना चाहती थीं, पर उस वक्त भारत और ब्रिटेन दोनों देशों में एक महिला को अधिवक्ता के तौर पर प्रैक्टिस करने का अधिकार नहीं था।
- कार्नेलिया ने एक वकील और सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर करीब 600 से ज़्यादा महिलाओं को इंसाफ़ दिलाया, उनका हक़ दिलाया, और पीड़ित महिलाओं को मर्दों के अत्याचार से छुटकारा दिलाया।
- कार्नेलिया पर कई बार जानलेवा हमले हुए। ऐसा इसलिए क्योंकि उस वक्त भारत में कई रियासतें हुआ करती थीं। और लगातार महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने पर कई रियासत उन्हें अपना दुश्मन समझने लगे थे।
- एक बार एक शाही परिवार ने कार्नेलिया को मेहमान के तौर पर इंवाइट किया और उनके कमरे में सुबह का नाश्ता भिजवाया। कार्नेलिया को खाने में से आ रही कुछ अलग सी महक के कारण गड़बड़ी लगी, तो उन्होंने खाना नहीं खाया। बाद में पता चला की खाने में जहर था।
- आख़िरकार साल 1919 में ब्रिटेन ने क़ानून में बदलाव हुआ, और महिलाओं को भी क़ानूनी क्षेत्र में आने की परमिशन दे दी गई। इससे महिलाओं के वकील और जज बनने का रास्ता भी साफ़ हो गया। इससे Cornelia Sorabji को भी फायदा हुऐ और वो भारत की पहली महिला अधिवक्ता बनीं।
- ब्रिटेन की पहली महिला बैरिस्टर हेलेना नॉर्मेंटन (Helena Normanton) ने कहा था, ‘Cornelia Sorabji महिलाओं के हक लिए खूब लड़ीं। महिलाओं को वकालत करने की परमिशन दिलाने के लिए उन्होंने जो संघर्ष किया उसी की बदौलत आज मैं अधिवक्ता बनी हूं।”
- वकालत से रिटायरमेंट लेने के बाद कार्नेलिया लंदन में जा कर बस गई। साल 1954 में कार्नेलिया सोराबजी का 88 साल की उम्र में निधन हो गया।
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