Bahupati Vivah Pratha: देवभूमि हिमाचल की गहराई में छिपी परंपराएं एक बार फिर चर्चा में हैं. सिरमौर जिले के गिरिपार क्षेत्र के कुन्हाट गांव में एक अनोखी शादी ने पूरे प्रदेश और इंटरनेट मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है. यहां दो सगे भाइयों — प्रदीप नेगी और कपिल नेगी — ने एक ही महिला सुनीता चौहान से विधिवत रूप से विवाह किया. यह विवाह बहुपति प्रथा (Bahupati Vivah Pratha) का हिस्सा है, जो हिमाचल के कुछ क्षेत्रों में अब भी सांस्कृतिक पहचान के रूप में मौजूद है.
खुले मंच पर हुआ अनोखा विवाह, 4000 से ज्यादा मेहमान बने गवाह
11 से 13 जुलाई तक चले इस पारंपरिक विवाह समारोह में करीब 4,000 मेहमान शामिल हुए। यह विवाह इसलिए भी खास था क्योंकि इस तरह के विवाह पहले गुपचुप होते थे, लेकिन प्रदीप और कपिल ने इस परंपरा को समाज के सामने खुलेआम निभाया।
बड़े भाई प्रदीप नेगी, जो जल शक्ति विभाग में कार्यरत हैं, और छोटे भाई कपिल नेगी, जो विदेश में नौकरी करते हैं, दोनों ने बताया कि यह निर्णय दुल्हन की स्वेच्छा और सहमति से लिया गया है.
Bahupati Vivah Pratha: सामाजिक सोच और भाईचारे की मिसाल
गिरिपार क्षेत्र की बहुपति परंपरा (Polyandry) हिमालयी समाज में लंबे समय से प्रचलित रही है. इस परंपरा का मुख्य उद्देश्य था — परिवारों में भाईचारा बनाए रखना, भूमि के बंटवारे से बचाव और जनसंख्या नियंत्रण.
ऐसी मान्यता है कि जब दो या तीन भाई एक ही महिला से विवाह करते हैं, तो उनके बच्चों में भी आपसी सौहार्द और समानता बनी रहती है.
गिरिपार: सांस्कृतिक विरासत और जनजातीय पहचान
गिरिपार क्षेत्र जो कभी हिमाचल का पिछड़ा और दुर्गम क्षेत्र माना जाता था, वहां के लोगों की सोच आज भी आधुनिकता से कहीं अधिक व्यावहारिक और समाज-संरचनात्मक रही है. यही कारण है कि केंद्र सरकार द्वारा ट्रांसगिरी क्षेत्र के निवासियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के पीछे बहुपति-बहुपत्नी प्रथा को भी अहम माना गया.
पोलियंडरी इन द हिमालयाज’ में विस्तार से वर्णन
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के डॉ. वाईएस परमार पीठ के पूर्व अध्यक्ष प्रो. ओपी शर्मा बताते हैं कि हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार ने अपने पीएचडी शोध में इस परंपरा का विस्तार से अध्ययन किया. उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘Polyandry in the Himalayas’ इस बात का प्रमाण है कि यह प्रथा सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों से उपजी है, न कि किसी अंधविश्वास या पितृसत्तात्मक दबाव से.
परंपरा की आड़ में शोषण नहीं
डॉ. परमार का स्पष्ट मानना था कि इस परंपरा की आड़ में महिलाओं का शोषण नहीं किया जा सकता. उन्होंने इसे हिमालयी क्षेत्र की सांस्कृतिक अनिवार्यता बताया, जो अब समय के साथ घट रही है.
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