El nino : मानसून के इंतजार में लोगों की आंखें थक गई पर इस बार का मानसून दगाबाज निकला। साल 1901 के बाद इस बार अगस्त का महीना सबसे अधिक सूखा गुजरा है। हालांकि, मौसम विभाग ने सितंबर में मानून के फिर से एक्टिव होने की उम्मीद जताई है, लेकिन शुष्क हवा की चाल, असमान बारिश का अनुपात और अलनीनो के असर (El nino Effect) को देखते हुए खतरे की आशंका भी कम नहीं है।
इस पूरे मौसम में बारिश की मात्रा 9 परसेंट कम है। अगस्त में यह 36 परसेंट कम है। ऐसा 122 साल पहले हुआ था। मौसम विभाग का अनुमान है कि इसी हफ्ते के अंत तक दक्षिण-पश्चिम मानसून फिर से एक्टिव हो सकता है। इससे देश के मध्य और दक्षिणी हिस्सों में बारिश का एक दौर फिर शुरु होगा।
मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने मीडिया को बताया कि सितंबर में 167.9 मिमी वर्षा होने का अनुमान है, जो लंबी अवधि के औसतम का लगभग 91-109 परसेंट होगा। हालांकि महापात्र ने यह भी कहा है कि मानसूनी बारिश का यह औसत सामान्य से कम होगा।
बारिश की यह मात्रा देश भर में एक समान नहीं रहेगी। पूर्वोत्तर हिस्से और हिमालय की तलहटी के कई क्षेत्रों में अधिक और बाकी हिस्सों में सामान्य से कम बारिश हो सकती है। इससे साफ है कि देश के पूर्व, मध्य और दक्षिणी क्षेत्रों को सूखे या अल्पवर्षा का सामना करना पड़ सकता है।
El nino ने डाला फर्क
IMD ने अगस्त में कम बारिश के लिए अलनीनो (El nino) को जिम्मेदार बताया और कहा कि दक्षिण अमेरिका के पास प्रशांत महासागर में पानी के गर्म होने का असर भारत में मानसूनी वर्षा पर पड़ा। अगस्त में सबसे कम गुजरात में सामान्य से 90 परसेंट कम बारिश हुई है।
El nino क्या है
अलनीनो (El nino) मौसम संबंधी एक विशेष स्थिति है, जो मध्य और पूर्वी प्रशांत सागर में समुद्र का तापमान सामान्य से अधिक होने पर बनती है। अलनीनो इफ़ेक्ट की वजह से तापमान काफी गर्म हो जाता है। इसकी वजह से पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में रहने वाला गर्म सतह वाला पानी भूमध्य रेखा के साथ पूर्व की ओर बढ़ने लगता है, जिससे भारत के मौसम पर असर पड़ता है। इस स्थिति में भयानक गर्मी का सामना करना पड़ता है और सूखे के हालात बनने लगते हैं।
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अलनीनो का असर
भारत में अलनीनो इफेक्ट नॉर्मली दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्य से अधिक शुष्क मौसम और पूरे देश में बढ़ी हुई गर्मी और सूखे के लिए जिम्मेदार होता है। इस तरह के प्रभाव से फसलों और जानवारों को काफी नुकसान हो सकता है, फसल भोजन की कमी हो सकती है, जो इन्डायरेक्ट्ली भारत की इकोनॉमी पर भी असर डाल सकता है।
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