Electoral Bond : सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक ठहराया है। कोर्ट का कहना है कि यह योजना सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है। आइये जानते हैं कि चुनावी बॉन्ड (Electoral Bond) और चुनावी बॉन्ड योजना क्या है और इस योजना को कब और किस मकसद से शुरू किया गया था।
क्या है चुनावी बांड
What is Electoral Bond
चुनावी बांड करेंसी नोट की तरह होता है। आप इसे एक एग्जाम्पल से समझ सकते है। मान लीजिए आपको किसी पार्टी को 1,000 रुपये चंदा देना है तो आप भारतीय स्टेट बैंक से 1,000 रुपये का चुनावी बॉन्ड खरीद सकते है। इसी तरह से 10,000 रुपये, 1,00,000 रुपये और 10,00,000 रुपये और 1 करोड़ रुपये तक के चुनावी बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं।
क्या है चुनावी बॉन्ड योजना
चुनावी बांड योजना के तहत कोई भी भारतीय नागरिक या भारत में स्थापित संस्था चुनावी बॉन्ड खरीद सकती है। बॉन्ड कोई व्यक्ति अकेले या संयुक्त रूप से खरीद सकता है। सरकार की दलील है कि चूंकि बॉन्ड पर दानदाता का नाम नहीं होता है, और पार्टी को भी दानदाता का नाम नहीं पता होता है। सिर्फ बैंक जानता है कि किसने किसको यह चंदा दिया है। इसका मकसद है कि पार्टी अपनी बैलेंसशीट में चंदे की रकम को बिना दानदाता के नाम के जाहिर कर सके। तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2017-18 के बजट भाषण में चुनावी बॉन्ड योजना की घोषणा की थी।
कौन जारी करता है चुनावी बॉन्ड
चुनावी बॉन्ड (Electoral Bond) जारी करने और उसे भुनाने के लिए भारतीय स्टेट बैंक को अधिकृत किया गया है। भारतीय स्टेट बैंक अपनी 29 शाखाओं पर यह काम करता है। चुनावी बॉन्ड की वैधता बॉन्ड जारी होने के बाद 15 दिन तक ही रहती है।
अब तक कितना मिला चंदा
राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड के जरिए जनवरी, 2024 तक 16,518.11 करोड़ रुपये चंदा मिला है। वित्त वर्ष 2023-24 तक सभी राजनीतिक दलों को मिला कर चुनावी बॉन्ड (Electoral Bond) के जरिए 12,000 करोड़ रुपये चंदा मिला। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को वित्त वर्ष 2022-23 में कुल 850 करोड़ रुपये से अधिक चंदा मिला है।
किस राजनीतिक पार्टी को मिला कितना चंदा
चुनावी बॉन्ड योजना पर क्यों उठ रहे सवाल
चुनाव आयोग और चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए काम कर रहे संगठनों का मानना है कि ये तरीका पारदर्शी नहीं है। इसमें दानदाता का नाम जाहिर नहीं किया जाता है। इस कारण इससे काले धन को बढ़ावा मिलने की आशंका है। इसके अलावा कॉरपोरेट घराने सत्तारूढ़ दल को इस तरीके से चंदा देकर अपना फायदा निकाल सकते हैं। विपक्षी दल भी इसका विरोध कर रहे हैं।
ब्रिटेन में राजनीतिक फंडिग के नियम
ब्रिटेन में राजनीतिक चंदे के लिए कानून है। इसके तहत राजनीतिक दलों को मिलने वाला 500 पाउंड से अधिक का कोई भी चंदा ब्रिटेन के किसी व्यक्ति या कंपनी से होना चाहिए। 500 पाउंड या इससे कम का योगदान चंदा नहीं माना जाता है।
पार्दर्शिता के लिए आई थी ये योजना
तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी बॉन्ड योजना पेश करते हुए कहा था कि भारत में राजनीतिक चंदे के सिस्टम की सफाई करने की जरूरत है। उन्होंने चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा देने वाले व्यक्ति या सस्था की पहचान गोपनीय रहने के नियम का भी बचाव किया था। उन्होंने कहा था कि अगर दानदाताओं को अपना नाम जाहिर करने के लिए मजबूर किया जाएगा तो नकद और काले धन के जरिए राजनीतिक फंडिंग का सिस्टम फिर से वापस आ जाएगा। चुनावी बॉन्ड योजना राजनीतिक फंडिंग को पारदर्शी और जवाबदेह बनाएगी। जेटली ने कहा था कि आजादी के 70 वर्षों के बाद भी देश राजनीतिक दलों को चंदे के लिए कोई पारदर्शी व्यवस्था नहीं बना सका है।
निष्पक्ष चुनाव के लिए ऐसी व्यवस्था जरूरी है। राजनीतिक दलों को ज्यादातर चंदा अज्ञात दानदाताओं से मिल रहा है, जिसे नकद दिखाया जा रहा है। अरुण जेटली ने अटल बिहारी वाजेपेई सरकार में कानून मंत्री के तौर पर राजनीतिक फडिंग में सुधार की दिशा में अहम कदम उठाया था। वे एक विधेयक लाए थे, जिसके जरिए चेक से चंदे को वैध बनाया गया था। इसके तहत चेक से मिले चंदे को इनकम टैक्स और चुनाव आयोग के समक्ष घोषित करना जरूरी था।
ALSO READ – Minimum Support Price : MSP क्या है ? किसान इसके लिए क्यों बवाल कर रहे हैं?
Click Here to Follow us on Twitter (X)..