Bilkis Bano Case : बिलकिस बानो गैंगरेप केस में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना ने गुजरात सरकार के दोषियों को रिहा करने के फैसले (Bilkis Bano Case) को गलत बताया है। जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में राज्य सरकार को काफी वॉर्नंग भी दी है। जस्टिस नागरत्ना अपने सख्त फैसलों के लिए जानी जाती हैं। नोटबंदी से लेकर अभिव्यक्ति की आजादी तक के फैसले में नागरत्ना का टफ स्टैंड साफ दिखता है। चलिए जानते हैं जस्टिस नागरत्ना के 30 साल के कैरियर में उनके द्वारा लिए गए कुछ महत्वपूर्ण फैसले।
Bilkis Bano Case में अपना फैसला सुनाने वाली जस्टिस नागरत्ना को 2010 में हाई कोर्ट का स्थायी जज बनाया गया था। जस्टिस नागरत्ना ने बतौर वकील 1987 अपने कैरियर की शुरुआत की थी। 2008 में नागरत्ना को कर्नाटक हाई कोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश बनाया गया था। 2023 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया।
नोटबंदी पर अलग राय
2016 में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के 500 और 1000 रुपए के नोट को बंद करने फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के आधार पर वैध करार दिया था। इसी पीठ में जस्टिस नागरत्ना भी शामिल थी। हालाकि, उन्होंने बहुमत फैसले से अलग अपना फैसला लिखा था.। उन्होंने 8 नवंबर 2016 के नोटबंदी के फैसले को गलत और गैरकानूनी करार दिया था।
नाजायज संतान पर फैसला
कर्नाटक हाई कोर्ट में जज रहने के दौरान जस्टिस नागरत्ना ने नाजायज संतानों के लेकर एक टिप्पणी की थी। उन्होंने अपनी कमेंट में कहा था कि कानून को यह मानना चाहिए कि नाजायज माता-पिता हो सकते हैं, उनसे पैदा होने वाले बच्चे नहीं। जस्टिस नागरत्ना ने कहा था कि बिना माता-पिता के बच्चे का जन्म हो नहीं सकता है। उन्होंने सरकार से कहा था कि वैध विवाह के अलावा पैदा हुए बच्चों को किस तरह की सामाजिक सुरक्षा दी जा सकती है।
हेट स्पीच केस
जस्टिस नागरत्ना ने हेट स्पीच मामले में सुनवाई के दौरान काफी सख्त कमेंट किया था। उन्होंने हेट स्पीच को गंभीर अपराध बताया था। जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस नागत्ना की पीठ ने इसे गंभीर अपराध बताते हुए कहा था कि इससे देश के धार्मिक तानेबाने को नुकसान पहुंच सकता है।
फ्रीडम ऑफ स्पीच
जस्टिस नागरत्ना ने सार्वजनिक पदाधिकारियों की फ्रीडम ऑफ स्पीच से संबंधित एक मामले में बहुमत वाले अपने फैसले में लिखा था कि अभद्र भाषा का इस्तेमाल संविधान के मूलभूत मूल्यों पर प्रहार के समान है। उन्होंने अपने फैसले में लिखा था कि भाषण या बोलने की स्वतंत्रता एक जरूरी अधिकार है। इसके जरिए शासन के बारे में लोगों को जानकारी दी जाती है, लेकिन ये अभद्र नहीं हो सकती है। उन्होंने किसी तरह का बयान देने के दौरान थोड़ा सतर्क रहने की बात भी लिखी थी। इस बार जस्टिस नागरत्ना Bilkis Bano Case पर लिए गए अपने फैसले को लेकर सुर्खियों में हैं।
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