Chandrayaan-3 : भारत ने चंद्रयान-2 मिशन के तहत चंद्रमा पर लैंडर को उतारने की कोशिश की थी। हालांकि आखिरी समय में लैंडर से संपर्क टूट गया था और उसकी क्रैश लैंडिंग हो गई थी। इस बार (Chandrayaan-3) सक्सेसफुल लैंडिंग के लिए ISRO ने इसमें कई सारी सावधानियां बरती हैं। इनमें सफलता आधारित डिजाइन के बजाय विफलता आधारित डिजाइन (failure based design) भी शामिल है।
भारतीय समय के अनुसार शाम 6.04 पर लैंडर विक्रम चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। इसके साथ ही भारत चंद्रमा की दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा। इस मिशन पर 600 करोड़ रुपये का खर्च आया है। अब तक अमेरिका, रूस और चीन ने ही चंद्रमा की सतह पर अपने लैंडर उतारे हैं। एक भी देश चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर नहीं पहुंच सका है।
ISRO 23 अगस्त यानी आज शाम 5.20 बजे से इसका सीधा प्रसारण करेगा। ISRO की वेबसाइट, यूट्यूब चैनल और फेसबुक पेज के साथ ही दूरदर्शन के नेशनल चैनल पर भी टेलीकास्ट होगा।
4 चरणों में पूरी होगी उतरने की प्रक्रिया
मापदंडों की जांच करने और लैंडिंग का डिसीजन लेने के बाद इसरो बेंगलुरू स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क से लैंडिंग से कुछ घंटे पहले कमांड लैंडिंग मॉड्यूल को देगा। साफ्ट लैंडंग की प्रक्रिया 19 मिनट की होगी। 17 मिनट बेहद अहम होंगे। लैंडर के इंजन की सही समय और ऊंचाई पर चालू करना होगा। इसमें फ्यूल का उपयोग और लैंडिंग स्थल पर बाधा या पहाड़ी क्षेत्र या गड्ढे का पता लगाना शामिल है।
विफलता-आधारित डिजाइन चंद्रयान-3 को बनाएगी सफल
ISRO प्रमुख सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान-2 में सफतला आधारित डिजाइन के बजाय ISRO ने Chandrayaan-3 में विफलता आधारित डिजाइन को चुना, जिसमें इस बात पर ध्यान दिया गया है कि क्या फेल हो सकता है और इसे कैसे सेफ रखा जाए और सफल लैंडिंग कन्फर्म की जाए।
सोमनाथ ने कहा- हमने बहुत सी विफलताों को देखा- सेंसर फेल्योर, इंजर फेल्योर, एल्गोरिदम फेल्योर, काउंटिंग फेल्योर। इसलिए जो भी फेल्योर यानी विफलता है हम चाहते हैं कि उसे ठीक किया जाए। अलग अलग विफलता परिदृश्यों की काउंटिंग और प्रोग्राम किया गया है।
लैंडिग का सबसे जरूरी हिस्सा लैंडर के वेग (Velocity) को कम कर 30 km की ऊंचाई से चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने तक की प्रक्रिया है। हमें इसे क्षीतिज से वर्टिकल डायरेक्शन में ट्रांसफर करना है। लैंडिंग प्रक्रिया की शुरुआत में वेलॉसिटी 1.68 km पर सेकेंड है, पर स्पीड चंद्रमा की सतह के हॉरिजॉन्टल है।
Chandrayaan-3 यहां लगभग 90 डिग्री झुका हुआ है, इसे लंबवत (vertical) करना है। हमने बहुत सारे सिमुलेशन किए हैं। यहीं पर हमें पिछलीबार (चंद्रयान-2) समस्या हुई थी। चंद्रयान की सफल लैंडिंग के लिए इस बार कई तकनीक बदले गए हैं।
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समस्या हुई तो 27 अगस्त को होगी लैंडिंग
ISRO ने विश्वास जताया कि कामयाबी जरूर मिलेगी, पर अगर कोई तकनीकी समस्या आती है तो लैंडिंग 27 अगस्त तक के लिए टाली जा सकती है। ISRO अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र के निदेशक नीलेश देसाई के अनुसार, वैज्ञानिकों का ध्यान चंद्रमा की सतह के ऊपर अंतरिक्ष यान की गति को कम करने पर होगा। अगर हम उस स्पीड को कंट्रोल नहीं करते हैं तो क्रैश लैंडिंग की आशंका है।
अगर 23 अगस्त को कोई भी तकनीकी दिक्कत आती है तो हम लैंडिंग को 27 अगस्त तक के लिए स्थगित कर देंगे। आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से एलवीएम – 3 एम4 चंद्रयान-3 को लेकर 14 जुलाई को रवाना हुआ। इसके बाद ISRO ने पृथ्वी से दूर कई बार Chandrayaan-3 की कक्षाएं बदली थी।
पृथ्वी की अलग अलग कक्षाओं में परिक्रमा करते हुए एक अगस्त को स्लिंगशॉट के बाद पऋत्वी की कक्षा छोड़कर यान चंद्रमा की कक्षा की ओर बढ़ा था। 5 अगस्त को इसने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया। 18 और 19 अगस्त को 2 बार डीबूस्टिंग (गति कम करने की प्रक्रिया) के बाद विक्रम लैंडर और रोवर वाला लैंडर मॉड्यूल चांद की सबसे करीबी कक्षा में पहुंच गया है।
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