Grandmaster R Praggnanandhaa : भारत के प्रागनानंद और World No. 1 मैग्नस कार्लसन के बीच FIDE विश्व कप फाइनल का पहला गेम 35 चालों के बाद ड्रॉ हुआ। सफेद मोहरों से खेल रहे प्राग (Grandmaster R Praggnanandhaa) मुकाबले की शुरुआत में समय पर आगे थे, पर अपनी बढ़त पर जोर नहीं दे पाए और अंत तक खुद ही समय की समस्या में फंस गए। दोनों खिलाड़ी कल फाइनल के दूसरे गेम के लिए लौटेंगे।
भारतीय ग्रैंडमास्टर आर प्रगनानंद ने सोमवार को इतिहास रचते हुए फिडे शतरंज विश्व कप के फाइनल में पहुंचे हैं। सोमीफाइनल में प्रगनानंद ने विश्व नंबर तीन खिलाड़ी फाबियानी कारूऑआना को टाईब्रेकर में 3.5-2.5 से हरा दिया। फाइनल में प्रगनानंद (Grandmaster R Praggnanandhaa) का सामना वर्ल्ड के नंबर एक खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन से हुआ, जहां पहले दिन मैच ड्रॉ हो गई।
विश्वनाथन आनंद के बाद दूसरे खिलाड़ी
विश्वनाथन आनंद के बाद चेस वर्ल्डकप फाइनल में पहुंचने वाले प्रगनानंद (Grandmaster R Praggnanandhaa) दूसरे भारतीय हैं। प्रगनानंद ने 2024 कैंडिडेट्स में जगह पक्की कर ली है। बॉबी फिशर और मैग्नस कार्लसन के बाद कैंडिडेट्स के लिए क्वालीफाई करने वाले प्रगनानंद तीसरे सबसे युवा खिलाड़ी हैं। विश्वनाथन ही कैंडिडेट्स में भारत के लिए खेले हैं।
बड़ी बहन से मिली प्रेरणा
फिडे चेस वर्ल्ज कप के फाइनल में पहुंचने वाले भारतीय युवा ग्रैंडमास्टर आर, प्रगनानंद ने अपनी बड़ी बहन अंतरराष्ट्रीय मास्टर वैशाली से प्रेरणा लेकर यह खेल खेलना शुरु किया था। प्रगनानंद (Grandmaster R Praggnanandhaa) के पिता रमेशबाबू ने बताया कि वैशाली को शतरंज में दिलचस्पी थी और प्रगनानंद उन्हें खेलते हुए देखा करता था। इसके बाद उनकी भी इस खेल में दिलचस्पी बढ़ी।
उन्हें अगर इस खेल में उपलब्धि मिली है तो उसके पीछे की वजह उनका हमेशा शांत रहना है। वह कभी परेशान और निराश नहीं होते।
बता दें कि प्रगनानंद इससे पहले दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी नॉर्वे के मैग्नस कार्लसन को हरा चुके हैं। प्रगनानंद जब भी खेलने जाते हैं तो माथे पर सफेद टीका लगा रहता है। इस पर उनके पिता ने बताया कि यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है। हम सभी यह लगाते हैं।
10 साल की उम्र में ही बन गए थे इंटरनेशनल मास्टर
प्रगनानंद (Grandmaster R Praggnanandhaa) ने बचपन से ही बड़ी उपलब्धियां हासिल की है। 2013 में अंडर 8 वर्ल्ड यूथ चेस चैंपियनशिप जीतने के बाद वह 2016 में 10 साल 10 महीने 19 दिन के उम्र में शतरंज इतिहास के सबसे युवा इंटरनेशनल मास्टर बने थे। इसके बाद नवंबरर 2017 में वर्ल्ड जूनियर चेस चैंपियनशिप के दौरान उन्होंने पहला ग्रैंडमास्टर नार्म प्राप्त किया।
प्रगनानंद ने दूसरा नार्म 2018 में हेराकलायन फिशर मेमोरियल जीएम टूर्नामेंट में हासिल किया। फिर जून 2018 में प्रगनानंद ने तीसरा नार्म भी प्राप्त कर लिया। और 12 साल 10 महीने 13 दिन की उम्र में ग्रैंडमास्टर रैंकिंग हासिल करने वाले उस समय दूसरे सबसे युवा खिलाड़ी बने थे।
प्रगनानंद अभिमन्यू मिश्रा, सेर्गेई कारजाकि, डी गुकेश और जावोखिर सिंदारोव के बाद ग्रैंडमास्टर बनने वाले पांचवें कम उम्र के खिलड़ी हैं। ग्रैंड मास्टर होने के लिए खिलाड़ी को कम से कम 27 गेम में तीन या इससे अधिक ग्रैंड मास्टर नार्म प्राप्त करना जरूरी होता है।
प्रगनानंद के पिता ने क्या कहा
प्रगनानंद के साथ उनकी मां नागलक्ष्मी साथ रहती हैं। इस टूर्नामेंट के दौरान भी मां और बहन उनके साथ बाकू में हैं जबकि पिता अकेले तमिलनाडु में घर पर हैं। रमेशबाबू ने दैनिक जागरण को दिए एक इंटरव्यू में बताया – सेमाफाइनल मैच के बाद उनकी बेटे से बात हुई है। मैं हर दिन उनसे बात करता हूं। मेरी उनसे गेम को लेकर बात नहीं होती है। मैं सिर्फ आम बात करता हूं।
विश्वनाथन आनंद के बाद प्रगनानंद (Grandmaster R Praggnanandhaa) दूसरे भारतीय हैं जो इस टूर्नामेंट के फाइनल में पहुंचे हैं। इस पर रमेशबाबू ने कहा- पूरा परिवार काफी खुश है और सभी गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। मैं फाइनल के लिए उन्हें कोई सलाह नहीं देना चाहता। उन्हें पता है कि वहां किस तरह खेलना है। हम कभी उनके खेल को लेकर दखल नहीं देते हैं। मैं किसी ने उनकी तुलना नहीं करता हूं।
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