Gyanvapi : अमेरिका के लॉस एंजिलिस में स्थित गेट्टी म्यूजियम के फोटोग्राफ्स डिपार्टमेंट में तस्वीरें डिस्प्ले है, जिसके फोटो डीटेल में लिखा है- ‘Gyanvapi are well of Knowledege’ यानी ज्ञानवापी ज्ञान का कुआं है। फोटो के डिस्क्रिप्शन में लिखा है- वाराणसी में इसी नाम की मस्जिद के अंदर ज्ञानवापी कुएं का दृश्य। तीन अलंकृत नक्काशीदार स्तंभ अग्रभूमि में, एक खोदी गई मेहराब के नीचे और एक नक्काशिदार मूर्ति के सामने खड़े हैं।
एक दूसरी तस्वीर में अलंकृत रूप से सजाई गई मूर्ति दो स्तंभों के बीच दिख रही है और इसके ऊपर स्तंभों में से एक के टॉप पर घंटी लटकी हुई है। इस फोटो में दीवार पर बनी बजरंगबली की मूर्ति, घंटियां, नक्काशिदार खंभे और अन्य हिंदू धर्म के प्रतीक चिन्ह एकदम साफ देखे जा सकते हैं।
यह तस्वीरें ब्रिटिश फोटोग्राफर सैमुअल बार्न ने 1869 में तब खींची थी, जब वह वाराणसी यात्रा पर आए थे। ये फोटोग्राफ्स आज से 155 साल पहले ज्ञानवापी की असलियत को दर्शाते हैं। म्यूजियम में सैमुअल के खींचे और नीलामी में प्राप्त लगभग 150 फोटोग्राफ्स हैं, जो सैमुअल ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कैमरे से खींची थी। इनमें वाराणसी के घाट, अलामगिरी मस्जिद सहित अनेक मंदिरों और ज्ञानवापी (Gyanvapi) के अंदर और बाहर बैठे नंदी की भी कई तस्वीरें हैं।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के प्राचीन इतिहास, कला संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर अशोक कुमार सिंह बताते हैं कि सैमुअल बार्न के चित्रों में ज्ञानवापी (Gyanvapi) में दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र, हिन्दू धर्म के प्रतीक चिन्ह स्पष्ट रुप से मौजूद दिखे हैं। इससे ये पता चलता है कि ज्ञानवापी के अंदर आज भी मंदिर के बहुत सारे अवशेष पाए जा सकते हैं।
ज्ञानवापी तहखाने का इतिहास
दस्तावेजों पर गौर करें तो 1669 में औरंगजेब ने ज्ञानवापी परिसर स्थित मंदिर ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण कराया। देश स्वतंत्र होने के बाद पुराने मंदिर के संबंध में लिखा पढ़ी शुरु हुई। वास्तव में ज्ञानवापी परिसर व्यास परिवार का हुआ करता था। कानूनी दस्तावेजों के अनुसार ज्ञानवापी परिसर और मस्जिद के एक तहखाने का स्वामित्व पं बैजनाथ व्यास के नाम था। अंत समय में उन्होंने अपने नाती पं केदरनाथ व्यास, पं सोमनाथ व्यास समेत तीन नातियों को वसीयत कर दी। व्यासपीठ की महत्ता का उल्लेख शास्त्रों में भी वर्णित है। यहां ही पंचक्रोशी समेत काशी की परंपरा से जुड़ी अन्य परिक्रमाओं के लिए संकल्प लिए जाते रहे हैं।
ज्ञानवापी परिसर का मामला परतंत्र भारत में व्यासपीठ से ही उठा था। उस वक्त यह मालिकाना हक का मामला हुआ करता था। इसमें व्यास परिवार को सफलता भी मिली, पर स्वतंत्रता मिलने के बाद 15 अक्टूबर 1991 को पं सोमनाथ व्यास ने ज्ञानवापी परिसर में नए मंदिर के निर्माण और पूजा पाठ को लेकर याचिका दाखिल की। सात मार्च 2000 को उनके निधन के बाद इसे वाद मित्र विजय शंकर रास्तोगी ने आगे बढ़ाया।
Image Source – Wikipedia
सोशल मीडिया पर VIRAL ज्ञानवापी की पुरानी तस्वीरें
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