Pain killer Medicines : पैरासिटामॉल और आइबुप्रोफेन दुनिया की सबसे आम ओवर-द-काउंटर पेन किलर दवाओं में से हैं, लेकिन इनको बनाने के लिए कच्चे तेल (Crude Oil) की जरुरत पड़ती है। अब, बाथ विश्वविद्यालय (Bath University) के रिसर्चर्स ने कागज उद्योग (Paper Industry) के कचरों से दवाएं बनाकर पर्यावरण को बचाने का एक नया जुगाड़ निकाला है।
हर साल 1 लाख टन से ज्यादा पैरासिटामॉल का प्रोडक्शन
जब हमें सिरदर्द महसूस होता है, तो हममें से कई लोग बिना सोचे समझे बस एक पेनकिलर की गोली (Pain killer Medicines) खा लेते हैं। लेकिन कई सामान्य फार्मास्यूटिकल्स, जैसे पैरासिटामॉल /एसिटामिनोफेन (paracetamol) (टाइलेनॉल और पैनाडोल एक्टिव इंग्रीडिएंट्स) और आइबुप्रोफेन (जिसे एडविल या नूरोफेन के रूप में भी जाना जाता है), कच्चे तेल (Crude Oil) के केमिकल का उपयोग करके बनाए जाते हैं। पूरी दुनिया में हर साल करीब 1,00,000 टन पैरासिटामॉल और आइबुप्रोफेन का प्रोडक्शन होता है।
बाथ यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर पब्लिश्ड एक रिपोर्ट के अनुसार, यूनिवर्सिटी के रसायन विज्ञान विभाग और इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबिलिटी के साइंटिस्ट्स की एक टीम ने ‘चीड़ के पेड़ों‘ में पाए जाने वाले एक कम्पाउंड से, जो एक अपशिष्ट उत्पाद भी है, दुनिया की दो सबसे आम दर्द निवारक दवाएं (Pain killer Medicines), पैरासिटामॉल और आइबुप्रोफेन बनाने का एक तरीका खोजा है।
कैसे होगा फायदा
रिसर्च टीम ने बायोरिन्यूएवल केमिकल बीटा-पाइनीन ((β-Pinene)) से कई अलग-अलग दवाइयां बनाने का तरीका निकाला है। बीटा-पाइनीन, असल में टरपेंटाइन यानी (तारपीन का तेल) का एक हिस्सा है। तारपीन का तेल, चीड़ के पौधों से भी निकलता है। रिपोर्ट के अनुसार, कागज़ इंडस्ट्री में भी हर साल कचरे के रूप में 3,50,000 टन से ज्यादा तारपीन का तेल निकलता है।
वैज्ञानिकों ने बीटा-पाइनीन (β-Pinene) से पैरासिटामॉल और आइबुप्रोफेन (Pain killer Medicines) बनाई है। क्योंकि दर्द से राहत देने वाली गोलियों में पूरी दुनिया में इन दोनों दवाओं का बड़े पैमाने पर उपयोग होता है। इसके अलावा साइंटिस्ट्स ने तारपीन से कई और केमिकल्स भी बनाए हैं, जिसमें- 4-HAP. यानी 4-(Hydroxyacetophenone) भी शामिल है। इस केमिकल का उपयोग दिल की दवाओं (Heart Related Medicine) और अस्थमा के इन्हेलर में डाली जाने वाली दवाई साल्ब्यूटामॉल बनाने में होता है।
इसके अलावा वैज्ञानिकों ने और भी कुछ केमिकल्स बनाए गए जो परफ्यूम और साफ़-सफाई के प्रोडक्ट्स में इस्तेमाल किये जाते हैं।
वैज्ञानिकों ने क्या बताया
बाथ यूनिवर्सिटी के रसायन विज्ञान विभाग में रिसर्च एसोसिएट डॉ जोश टिब्बेट्स ने बताया कि- फार्मास्यूटिकल्स बनाने के लिए तेल का उपयोग करना टिकाऊ नहीं है – यह न केवल बढ़ते CO₂ उत्सर्जन में योगदान दे रहा है, बल्कि इसके कीमत में भी उतार-चढ़ाव होता रहता है क्योंकि हम तेल के लिए ऐसे देशों पर निर्भर करते हैं जिनके पास तेल के बड़े भंडार हैं। बड़े तेल-भंडार के साथ, और यह और अधिक महंगा होने वाला है। जमीन से अधिक तेल निकालने के बजाय, हम भविष्य में इसे ‘बायो-रिफाइनरी’ मॉडल से बदलना चाहते हैं।
जॉश ने बताया कि- हमारे तारपीन बेस्ड बायो-रिफाइनरी मॉडल में हम कागज़ बनाने की इंडस्ट्री से निकले कचरे का उपयोग करते हैं। इनका उपयोग कई दवाइयां और प्रोडक्ट्स बनाने में किया जा सकता है।
बाथ यूनिवर्सिटी के अनुसार, ये प्रोसेस अभी कच्चे तेल पर बेस्ड प्रोसेस से थोड़ी महंगी हो सकती है, पर ये प्रक्रिया पौधों से मिलने वाले केमिकल पर बेस्ड है, इसलिए इससे कार्बन एमिशन कम होगा, जो पर्यावरण के लिए भी काफी अच्छा है।
दवाओं से होता है कितना प्रदूषण
एक रिसर्च के अनुसार, दुनिया भर की फॉर्मास्यूटिकल्स इंडस्ट्री का ग्लोबल वार्मिंग में बड़ा कन्ट्रिब्यूशन है। दवाओं की इंडस्ट्री, दुनिया भर की ऑटोमोटिव प्रोडक्शन इंडस्ट्री से ज्यादा प्रदूषण पैदा करती है। रिसर्च में पाया गया कि दवा इंडस्ट्री ने Per 10 lakh Dollar की कमाई पर 48.55 टन कार्बन डाइऑक्साइड एक्वीवैलेंट (CO₂e) यानी कार्बन डाइऑक्साइड या उसके जैसे दूसरे पॉल्यूशन फैलाने वाले केमिकल कम्पाउंड का उत्सर्जन (emissions) किया है।
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