Radha Ashtami 2023 : राधा अष्टमी भारत में श्री राधा के जन्म दिवस के रूप में मनाई जाती है। राधा अष्टमी हिंदू कैलेंडर के भाद्रपद महीने में शुक्ल पक्ष के आठवें दिन मनाई जाती है। इस बार भाद्रपद 22 सितंबर को दोपहर 1 बजकर 35 मिनट से शुरु होकर 23 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 17 मिनट पर समाप्त होगी। राधा अष्टमी जन्माष्टमी के 15 दिन बाद, भगवान कृष्ण के जन्मदिन और गणेश चतुर्थी के चौथे दिन आती है। ऐसा माना जाता है कि जन्माष्टमी का उत्सव राधा अष्टमी (Radha Ashtami 2023) के व्रत के बिना अधूरा है। आज राधा अष्टमी पर हम आपको राधा रानी के एक ऐसे प्राचीन मंदिर के बारे में बताएंगे जहां, लगभग 333 साल से राधा रानी एक छोटे से गर्भगृह में विराजमान हैं, और जिसका इतिहास मुगल बादशाह औरंगजेब से जुड़ा है। मंदिर का कपाट भक्तों के लिए साल में सिर्फ एक बार आज के ही दिन खुलता है।
333 साल से राधा रानी छोटे से गर्भगृह में हैं विराजमान
विदिशा शहर के नंदवाना गली स्थित राधा रानी के प्राचीन मंदिर के पट साल में सिर्फ एक बार राधा अष्टमी पर खुलते हैं। मंदिर के सेवक का कहना है कि जब तक ठकुराइन (राधा रानी) की भव्य हवेली (मंदिर) नहीं बनती तब तक साल भर मंदिर के पट नहीं खुल सकते। इस अवधि में श्रद्धालु राधा रानी के दर्शन नहीं कर पाते। मंदिर में गुप्त पूजा होती है। परंपरा के चलते इस बार भी रविवार को राधा अष्टमी (Radha Ashtami 2023) पर सिर्फ एक दिन के लिए मंदिर के पट खुले हैं। इसके बाद एक वर्ष के लिए पट बंद हो जाएंगे। राधा रानी मंदिर में राधाजी की 9 इंच की अष्टधातु की प्राचीन प्रतिमा के अलावा राधावल्लभ जी सहित ललिता, विशाखा, चित्रा, चंपक, लता आदि सहेलियां भी विराजमान हैं।
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औरंगजेब से छिपाकर लाई गई थी राधा रानी की प्रतिमा
मंदिर के सेवक, बताते हैं कि इससे पहले गर्भगृह में रखी राधा रानी की प्रतिमा और साथ की अन्य प्रतिमाएं वृंदावन में जमुना नदी के किनारे राधा रंगीराय मंदिर में विराजमान थीं। इन्हें 353 साल पहले सन् 1669 में गुप्तरुप से बचाते हुए विदिशा लाया गया था। क्योंकि उस वक्त मुगल सल्तनत का राजा औरंगजेब भारत की प्राचीन मंदिरों का विधवंश कर रहा था। वर्तमान में उनकी 12वीं पीढ़ी गुप्त रुप से सेवा करती आ रही है।
राधा अष्टमी पर ब्रजभूमि हो जाती है राधामय
Radha Ashtami 2023
यह माना जाता है कि श्री राधा भगवान श्रीकृष्ण की चेतना का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह भी माना जाता है कि राधा कृष्ण से अविभाज्य हैं। आज भी ब्रजभूमि (भगवान कृष्ण की जन्मस्थली) में लोग “राधे राधे” का जाप कर एक दूसरे को बधाई देते हैं। इस दिन, भक्त दिन के पहले भाग के लिए उपवास रखते हैं और मध्यना (दोपहर) के दौरान राधा की पूजा करने के बाद ही इसे तोड़ते हैं। राधा कृष्ण को समर्पित मंदिरों को सजाया जाता है और राधा के पैर जो अन्यथा शेष वर्ष के लिए ढके रहते हैं, कुछ मंदिरों में अनावरण किए जाते हैं।
राधा अष्टमी का इतिहास
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, श्री राधा भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी का अवतार हैं। यह दिन (Radha Ashtami 2023) बरसाना में देवी लक्ष्मी के अवतार की स्मृति में मनाया जाता है। श्री राधा का जन्म मथुरा के पास बरसाने में हुआ था, और वह वृषभानु और कृति की दत्तक पुत्री थीं।
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