Dussehra 2023 : हर साल शारदीय नवरात्रि के समापन के साथ ही दशमी तिथि पर दशहरा का त्योहार मनाया जाता है। राज मद और अहंकार में डूबे रावण का वध कर श्रीराम ने ऋषियों और देवगणों को रावण के राक्षसी राज से मुक्ति दिलाई। पर क्या आप ये जानते हैं कि- भारत में जहां दशहरे (Dussehra 2023) के दिन रावण दहन कर विजय दशमी मनाई जाती है। वहीं भारत में ही एक ऐसा गांव है जहां रावण की मौत पर शोक मनाया जाता है। कुछ ही लोग जानते होंगे की रावण के पिता का क्या नाम था और रावण ब्रह्माजी के पर परपोते थे। चलिए जानते हैं रावण से जुड़े कुछ ऐसे फैक्ट्स जो बहुत कम ही लोगों को पता होगा।
ब्रह्माजी के परपोते थे रावण
क्या आप जानते हैं रावण ब्रह्माजी के पर पोते थे। पुराणों के अनुसार, ब्रह्माजी के 10 बेटे थे, जिन्हें ब्रह्माजी ने अपने मन की शक्ति से उत्पन्न किया था। उनमें से एक थे प्रजापति पुलस्त्य, जिनके बेटे थे विश्रवा। रावण विश्रवा के ही बेटे थे। मान्यता है कि विश्रवा का पहला विवाह भारद्वाज की पुत्री इड़विड़ा से हुआ, जिसके बेटे का नाम कुबेर था। वहीं विश्रवा ऋषि की दूसरी शादी दैत्यराज सुमाली की बेटी कैकसी से भी हुई थी। रावण उन्हीं के बेटे थें। इस तरह देखा जाए तो रावण, ब्रह्माजी के सगे परपतो थे।
कुबेर के सौतेले भाई थे रावण
धन के देवता कुबेर रावण के ही भाई थे। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, रावण के पिता विश्रवा ऋषि की दो पत्नियां थीं। भारद्वाज की पुत्री इड़विड़ा का विवाह विश्रवा ऋषि से हुआ था। भगवान कुबेर इड़विड़ा के ही पुत्र थे। वहीं विश्रवा ऋषि का दूसरा विवाह दैत्यराज सुमाली की बेटी कैकसी से भी हुआ था। रावण उन्हीं के बेटे थें। इसलिए कुबेर रावण के सौतेले भाई हुए।
भगवान शिव ने दिया था रावण को नाम
भगवान शिव ने ही रावण को रावण नाम दिया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रावण शिवजी को कैलाश से लंका ले जाना चाहते थे, पर शिवजी के राजी न होने पर रावण ने पूरे कैलाश पर्वत को ही उठाने का प्रयास किय था। शिवजी ने अपना एक पैर कैलाश पर्वत पर रख दिया, तो रावण की उंगलियां दब गई। दर्द से रावण ने शिव को याद करते हुए शिव तांडव का स्मरण किया, जिसके बाद भगावन शिव ने प्रसन्न होकर रावण को यह नाम दिया, जिसका मतलब है तेज आवाज में दहाड़ना।
पूनर्जन्म कुंभकर्ण और रावण थें भगवान विष्णु के द्वारपाल
अपने पूनर्जन्म में रावण और उनके भाई कुंभकर्ण भगवान विष्णु के द्वारपाल थें, जिनका नाम जय और विजय था। दोनों को एक ऋषि से मिले श्राप के कारण राक्षस कुल में जन्म लेना पड़ा था। श्राप मिलने पर जय और विजय ने भगवान विष्णु से इच्छा जताई थी कि राक्षण कुल में उनका वध भगवान विष्णु के अवतार के द्वारा ही हो। श्रीराम और रावण के बातचीत में एक बार रामजी ने रावण को महा-ब्राहमण कहकर पुकारा था, क्योंकि रावण 64 कलाओं में निपुर्ण था।
Dussehra 2023 : यहां है अनोखा रावण मंदिर, दशहरे पर मनाते हैं शोक
कानपुर के शिवाला में एक अनोखा रावण मंदिर स्थित है। रावण का यह मंदिर साल में एक बार सिर्फ विजयदशमी पर ही खुलता है। इस मंदिर में रावण को शक्ति के रूप में पूजा जाता है। दशहरा (Dussehra 2023) के दिन जब मंदिर का कपाट खुलता है तो, तो सबसे पहले रावण का श्रृंगार किया जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 150 साल पूर्व महाराजा प्रसाद शुक्ल ने किया था। रावण की पूजा से प्रसन्न होकर मां छिन्नमस्तिका ने उन्हें वरदान दिया था कि, उनकी पूजा तब ही सफल होगी जब भक्त रावण की पूजा भी करेंगे। इसलिए दशहरा के दिन मां छिन्नमस्तिका की पूजा के बाद रावण की आरती की जाती है। दशहरे के दिन लोग यहां रावण दहन नहीं, बल्की शोक मनाते हैं।
बिसरख गांव में नहीं मनाते दशहरा और रामलीला
रावण का गांव बिसरख जहां, लोग रावण के वध की खुशी नहीं बल्कि शोक मनाते हैं। नोएडा से करीब 15 किलोमीटर दूर बिसरख गांव है। बिसरख में न ही रामलीला होती है न ही रावण दहन। इस गांव के लोग रावण को अपना बेटा मानते हैं। कहा जाता है कि रावण का जन्म इसी गांव में हुआ था। शिव पुराण में भी बिसरख गांव का जिक्र किया गया है। लोगों की माने तो 60 साल पहले इस गांव में एक बार रावण दहन और रामलीला का आयोजन किया गया था। इस दौरान गांव के एक व्यक्ति की मौत हो गई। इसे संयोग मानकर दूसरी बार फिर रामलीला का आयोजन किया गया तो फिर से एक व्यक्ति की मौत हो गई। गांव के कुछ हिस्सों में आग भी लग गई। इसके बाद फिर कभी गांव में रामलीला का आयोजन नहीं हुआ।
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